Saturday 23 September 2017

kab tumse shikayat hai

kab tumse shikayat hai
ik taza hikayat hai
sun lo to inayat hai

ik shaks ko dekha tha
taaron ki tarah humne
ik shak ko chaha tha
apno ki tarah humne
ik shaks ko samjha tha
phoolon ki tarah humne

woh shaks qayamat tha
kya uski karen baaten
din uske liye peda
aur uski hi theen raaten
kam milna kisi se tha
humse theen mulaqaten

rung uska shahabi tha
zulfon mein theen mehkaren
aankhen theen ke jaadu tha
palken theen ke talwaren
dushman bhi aggar dekhen
sau jaan se dil haaren

kuch tumse woh milta tha
baaton mein shabahat mein
haan tum sa hi lagta tha
shokhi mein shararat mein
lagta bhi tumhi sa tha
dastoor-e-mohabbat mein

woh shaks humein ik din
apno ki tarah bhoola
taaron ki tarah dooba
phoolon ki tarah toota
phir haat na aaya woh
humne to bohat dhoonda

tum kis liye chonke ho
kab zikr tumhara hai
kab tumse taqaza hai
kab tumse shikayat hai
ik taza hikayat hai
sun lo to inayat hai!

Tuesday 19 September 2017

मुजरा या दलाल मीडिया


पहले कोठे होते थे, उनमें मुजरे होते थे, इन कोठों पर अक्सर शहर, कस्बों के धनवान सेठ जाया करते थे। असल कोठे तो बहुत कम लोगों ने देखे होंगे जो देखे हैं फिल्मों में ही देखे हैं। हाथों में, गले में फूलों की माला पहने, शराब के जाम छलकाते, कामुक निगाहों से तवायफ़ का मुजरा देखते, उस पर रुपए लुटाते सेठों की बड़ी पूछ परख होती थी।

समय बदला, कोठों की जगह डांस बारों ने ले ली, फिलहाल ये डांस बार महानगरों तक ही सीमित हैं लेकिन इन्होंने मन में सेठों वाली हसरत लिए एक आम इंसान को भी अपने इस ख़्वाब को पूरा करने का मौक़ा दे दिया है। तेज़ संगीत में नाचती गाती बार बालाएं और जाम छलकाते, पैसा लुटाते "दिल के रईस".. ये अलग बात है कि कईयों को अगले दिन जब होश आया और पैसों का हिसाब लगाया तो पता चला कि कितना बुरी तरह खुद को लुटवाकर आये हैं।

डांस बारों का माहौल इतना रंगीन, चमकदार बनाया जाता है कि वहाँ जाने के बाद आदमी सब कुछ भूल जाता है, इतना मदमस्त हो जाता है कि वो केवल इसी दुनिया में ही जीना चाहता है। लेकिन इस चकाचौंध भरी दुनिया का काला स्याह सच जो कि लोग जानते हुए भी जानना नहीं चाहते हैं, वो है इनमें काम करने वाली लड़कियों का दर्द, उनकी मजबूरियाँ, उनकी असल ज़िंदगी की तकलीफ.. क्योंकि सौदा केवल खुशियाँ बिखेरने का होता है ग़म का नहीं..

समय ने एक करवट और ली थी गुपचुप तरीके से, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। डांस बारों की ही तर्ज़ पर भारत का मीडिया भी काम करता है। वो आपको असली दर्द, तकलीफें, असली मुद्दे कभी कभार ही बताता है। वो आपको एक अलग ही चकाचौंध में रखता है। हर मुद्दे का दाम तय होता है। कुछ "ब्रेकिंग" मिल जाय या बनाना हो तो उसकी क़ीमत अलग। इस "मुजरे" में नाचने वाले एंकर होते हैं, परदे के पीछे इनके "कोरियोग्राफर" अलग होते हैं। कुछ को नाचने का इतना अनुभव हो चुका है कि अब केवल उनके आका उन्हेँ "धुन" सुनाते हैं और उस पर कैसा मुजरा पेश करना है वो ये एंकर उर्फ़ पत्रकार उर्फ़ तवायफें अपने हिसाब से थिकरती हैं। बहुत ज़ोरदार मुजरा पेश करने पर पैसों की बारिश भी उसी तरह से होती है।

अधिकांश जनता इसी "मुजरे"को हक़ीक़त मानती है और इसी पर यक़ीन करना चाहती है। लेकिन एक बात तय है चकाचौंध कितनी भी हो, बाहर आकर असली दुनिया को देखना ही पड़ता है। मीडिया का मुजरा अपने आकाओं की मर्ज़ी और अपनी कमाई के हिसाब से चलता है, आप खुद को कितना लुटने से बचा पाते हो ये आपको तय करना है।

Tuesday 12 September 2017

रोहिंग्या मुसलमान

रोहिंग्या मुसलमान कौन हैं और इन पर इतना ज़ुल्म क्यों?

रोहिंग्या मुसलमान बौद्ध बहुल देश म्यांमार के रखाइन प्रांत में शताब्दियों से रह रहे हैं। इनकी आबादी क़रीब दस लाख से 15 लाख के बीच है। लगभग सभी रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन (अराकान) में रहते हैं और यह सुन्नी इस्लाम को मानते हैं।
रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या या रुयेन्गा भाषा बोलते हैं, जो रखाइन और म्यांमार के दूसरे भागों में बोली जाने वाली भाषा से कुछ अलग है। इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है। *1982 में म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता भी छीन ली,*  जिसके बाद से वे बिना नागरिकता के (स्टेटलेस) जीवन बिता रहे हैं।
रोहिंग्या मुसलमानों को बिना अधिकारियों की अनुमति के अपनी बस्तियों और शहरों से देश के दूसरे भागों में आने जाने की इजाज़त नहीं है। यह लोग बहुत ही निर्धनता में झुग्गी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दशकों से इलाक़े में किसी भी स्कूल या मस्जिद की मरम्मत की अनुमति नहीं दी गई है। नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदों को बनाने की भी रोहिंग्या मुसलमानों को इजाज़त नहीं है और अब उनकी ज़िंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी अपने बच्चों की मौत और मुफ़लिसी से ज़्यादा कुछ नहीं है।

*रोहिंग्या कहां से हैं और उनकी जड़ें कहा हैं?*

इतिहासकारों और अनेक रोहिंग्या संगठनों के मुताबिक़, जिस देश को अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है, वहां मुसलमान 12वीं शताब्दी से रहते चले आए हैं।
अराकान रोहिंग्या नेश्नल ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक़, रोहिंग्या अराकान (रखाइन) में प्राचीन काल से रह रहे हैं। 
1824 से 1948 तक ब्रिटिश राज के दौरान, आज के भारत और बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में मज़दूर वर्तमान म्यांमार के इलाक़े में ले जाए गए। ब्रिटिश राज म्यांमार को भारत का ही एक राज्य समझता था, इसलिए इस तरह की आवाजाही को एक देश के भीतर का आवागमन ही समझा गया।
ब्रिटेन से आज़ादी के बाद, इस देश की सरकार ने ब्रिटिश राज में होने वाले इस प्रवास को ग़ैर क़ानूनी घोषित कर दिया, इसी आधार पर रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया।
इसी कारण अधिकांश बौद्ध रोहिंग्या मुसमानों को बंगाली समझने लगे और उनसे नफ़रत करने लगे।

रोहिंग्या मुसलमानों पर क्यों अत्याचार किए जा रहे हैं? और उनकी नागरिकता क्यों छीन ली गई?
1948 में म्यांमार के ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद, नागरिकता क़ानून पारित किया गया, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया कि कौन से जातीय समूह नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। इसमें रोहिंग्याओं को शामिल नहीं किया गया। जबकि वह पैदाइश उस ही  देश के नागरिक थे हालांकि जो लोग देश में पिछली दो पीढ़ियों से रहे थे, उन्हें शनाख़्ती कार्ड के लिए योग्य मान्य गया।
शुरूआत में रोहिंग्याओं को ऐसे कार्ड और यहां तक कि नागरिकता पहचान पत्र जारी किए गए। इस दौरान कुछ रोहिंग्या मुसलमान सांसद भी चुने गए।
म्यांमार में 1962 के सैन्य तख़्तापलट के बाद, रोहिंग्याओं के लिए स्थिति में नाटकीय रूप से बदलाव आया। समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी किए गए, लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों को केवल विदेशी पहचान पत्र ही जारी किए गए, जिससे उन्हें रोज़गार, शिक्षा और दूसरी सुविधाओं से वंचित या सीमित कर दिया गया।
1982 में एक नया नागरिक क़ानून पारित किया गया, जिसके तहत रोहिंग्या मुसलमानों को स्टेटलेस कर दिया गया या उनकी नागरिकता पूर्ण रूप से छीन ली गई।
इस क़ानून के तहत, शिक्षा, रोज़गार, यात्रा, विवाह, धार्मिक आज़ादी और यहां तक की स्वास्थ्य सेवाओं से लाभ उठाने से रोहिंग्याओं को वंचित कर दिया गया।
हमेशा की तरह आज भी इस देश की सरकार और सेना रोहिंग्याओं का नरसंहार कर रही है, उनकी बस्तियों को जलाया जा रहा है, उनकी ज़मीनों को हड़प लिया गया है, मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया गया और उन्हें देश की सीमाओं से बाहर खदेड़ा जा रहा है।
यहां तक कि शांति नोबेल पुरस्कार विजेती आंग सान सू ची रोहिंग्या मुसमलानों पर हो रह अत्याचारों को सही ठहराते हुए इसे एक क़ानूनी प्रक्रिया बता रही हैं। दुनिया भर में अपनी मानवाधिकारों के लिए आवाज़ा उठाने वाली छवि गढ़ने वाली सू ची भी रोहिंग्याओं पर हो रहे अमानवीय अपराधों में बराबर की भागीदारी हैं।
म्यांमार में 25 साल बाद 2016 में आयोजित हुए चुनाव में सू ची की पार्टी नेशनल लीग फ़ोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। सू ची इस समय देश की सबसे प्रभावशाली नेता हैं। रखाइन में हो रहे ज़ुल्म को उन्होंने क़ानूनी कार्यवाही बताकर इंसानियत को शर्मसार कर दिया है जिसमें मासूम मासूम जिंदा बच्चों को आग में जला दिया जाता है इसको वह कानूनी कार्रवाई कह रहे हैं और तो बूढ़ों के खून की होली खेली जा रही है आज मयनमार की तस्वीरें वीडियो आप देख ले तो आपको कई दिनों तक खाना ना खाया जाए जुल्म के खिलाफ कोई आवाज नहीं लोग जालिम का साथ दे रहे हैं।

Sunday 10 September 2017

इस्लाम मे नारी का महत्व

इस्लाम में नारी का महत्व और सम्मान-

      यदि आप धर्मों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हर युग में महिलाओं के साथ सौतेला व्यवहार किया गया,
हर धर्म में महिलाओं का महत्व पुरुषों की तुलना में कम रहा। बल्कि उनको समाज में तुच्छ समझा गया, उन्हें प्रत्येक बुराइयों की जड़ बताया गया, उन्हें वासना की मशीन बना कर रखा गया। एक तम्बा युग महिलाओं पर ऐसा ही बिता कि वह सारे अधिकार से वंचित रही।
लेकिन यह इस्लाम की भूमिका है कि उसने हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा और उसको मर्द के समान अधिकार दिए गए।
  ♥ क़ुरआन की सूरः बक़रः (2: 228) में कहा गया:
“महिलाओं के लिए भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं।”
 
इस्लाम में महिलाओं का स्थान –
इस्लाम में महिलाओं का बड़ा ऊंचा स्थान है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने जीवन के हर भाग में महत्व प्रदान किया है। माँ के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, पत्नी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बेटी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बहन के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, विधवा के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, खाला के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, तात्पर्य यह कि विभिन्न परिस्थितियों में उसे सम्मान प्रदान किया है जिन्हें बयान करने का यहाँ अवसर नहीं हम तो बस उपर्युक्त कुछ स्थितियों में इस्लाम में महिलाओं के सम्मान पर संक्षिप्त में प्रकाश डालेंगे।
माँ के रूप में सम्मानः –
माँ होने पर उनके प्रति क़ुरआन ने यह चेतावनी दी कि “और हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है – उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे – कि ”मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी। अंततः मेरी ही ओर आना है॥14॥ ”
कुरआन ने यह भी कहा कि – “तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें ‘उँह’ तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्‍टापूर्वक बात करो॥23॥ और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, “मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।”॥24॥ (सूरः बनीइस्राईल 23-25)
    हदीस: माँ के साथ अच्छा व्यवहार करने का अन्तिम ईश्दुत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने भी आदेश दिया,
एक व्यक्ति उनके पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज्यादा अधिकारी कौन है?
आप ने फरमायाः तुम्हारी माता,
उसने पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता.
पूछाः फिर कौन ?
कहाः तुम्हारी माता,
पूछाः फिर कौन ? कहाः तुम्हारे पिता ।
मानो माता को पिता की तुलना में तीनगुना अधिकार प्राप्त है।

हदीस: अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “अल्लाह की आज्ञाकारी माता-पिता की आज्ञाकारी में है और अल्लाह की अवज्ञा माता पिता की अवज्ञा में है” – (तिर्मज़ी)
पत्नी के रूप में सम्मानः –
पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फरमाया और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। (निसा4 आयत 19) और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “एक पति अपनी पत्नी को बुरा न समझे यदि उसे उसकी एक आदत अप्रिय होगी तो दूसरी प्रिय होगी।” – (मुस्लिम)

बेटी के रूप में सम्मानः –
मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “जिसने दो बेटियों का पालन-पोषन किया यहां तक कि वह बालिग़ हो गई और उनका अच्छी जगह निकाह करवा दिया वह इन्सान महाप्रलय के दिन हमारे साथ होगा” – (मुस्लिम)
आपने यह भी फरमायाः जिसने बेटियों के प्रति किसी प्रकार का कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नरक से पर्दा बन जाएंगी” – (मुस्लिम)

बहन के रूप में सम्मानः –
मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जिस किसी के पास तीन बेटियाँ हों अथवा तीन बहनें हों उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा” – (अहमद)
विधवा के रूप में सम्मानः –
इस्लाम ने विधवा की भावनाओं का बड़ा ख्याल किया बल्कि उनकी देख भाल और उन पर खर्च करने का बड़ा पुण्य बताया है।
मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ”विधवाओं और निर्धनों की देख-रेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा और रात में इबादत कर रहा है।” – (बुखारी)

खाला के रूप में सम्मानः –
इस्लाम ने खाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे माता का पद दिया।
हज़रत बरा बिन आज़िब कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “खाला माता के समान है।” – (बुखारी)



भारतीय शिक्षा व्यवस्था

देश की  सबसे बड़ी समस्या है
देश की शिक्षा व्यस्था ।
Rte एक्ट 2009 देश की संसद ने पास किया कि 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को राज्य निःशुल्क
शिक्षा प्रदान करेगा ।
एक तरफ देश के निःशुल्क प्राइमरी स्कूल है और दूसरी तरफ
देश मे लाखों की फीस लेने वाले स्कूल ।
जब निःशुल्क शिक्षा की बात कही गयी तो यह शुल्क वाले स्कूल क्यो है  ? यदि है तो यह बच्चो पर फीस क्यों लेते है  ? यह स्कूल भी निःशुल्क  पढ़ाये । तब तो यह कानून सही है ।
यदि कोई कानून समाज मे भेदभाव करता है तो निश्चित ही समाज मे भेदभाव रहेगा ।🎤🎤🎤🎤🎤
इस एक्ट को बनाने वाले सांसद ही अपने बच्चों को निशुल्क फीस वाले स्कूलों में नही पढ़ाते है ।
यह कैसा कानून है इसे बनाने बाले ही पालन नही कर रहे है ।
निश्चित ही कोई न कोई बहुत बड़ी फाल्ट है इस कानून में ।
यह कानून भी देश मे एक पाठ्क्रम लागू नही कर सका
यह नही हो सका कि क्लास 1 की बुक जो  केरल में पढ़ाई जाए वही बुक delhi में पढ़ाई जाए । माध्यम की बात तो मान सकते है । लेकिन सिलेबस की नही। आज देश मे जितने स्कूल उतनी किताबे । वही स्कूल की प्रॉब्लम है जहाँ देश मे कुछ स्कूलों में ac रूम है तो कही छत भी नही है ।
यह कब तक होगा ?
कोई भी देश बिना समान शिक्षा के विकसित नही हो सकता ।
गरीब बच्चों का क्या दोष है कि पैदा होते ही सरकारी स्कूल में जाते है और इन नेताओं के बच्चों में ऐसा कौन सा गुण है कि इन्हें vip स्कूल मिलते है ।
इतना भेदभाव क्यो है  ?
आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम शिक्षा में समानता नही ला सके क्यो?
देश मे यह क्या हो रहा है दो घोड़ो
में एक घोड़े को चना, दाना, अच्छे ताकत की वस्तुएं खिलाओ और उसे रेस के लिए तैयार करो उसे ट्रेनिंग दो और एक घोड़े को मुंह बांधकर छोड़ दो घास चरने के लिए । बाद में  दौड़ कराये
औऱ कहे जो आगे रहेगा वह जीतेगा ।  यह मानवता नही है ।
यह क्रूरता है और यही देश मे हो रहा है । समान पेपर तब
समान स्कूल हो जब ।
जब देश की शिक्षा एक नही है तो सबको आईएएस pcs में सबको एक पेपर क्यो दिया जाता है ।
यह अन्याय है ।
यही देश मे हो रहा है ।
सरकारी लोंगो को अपने ही स्कूलों पर भरोसा नही है अपने ही शिक्षको पर भरोसा नहीं है।
अपनी ही किताबो पर भरोसा नही है । अपनी ही शिक्षा व्यवस्था
पर भरोसा नही है तो बिना सरकारी कैसे करें ।
जब तक शिक्षा में असमानता रहेगी।देश मे हर जगह ,हर क्षेत्र में असमानता रहेगी।

जेएनयू में लेफ्ट ही क्यों?


गुस्सा थूंको , और सुनो मेरी बात । आखिर jnu में हर बार लेफ्ट क्यों जीतते हैं ? क्योंकि वहां दाखिला परीक्षा के आधार पर होता है , और सुपठित - सुचिंतित लड़के एडमिशन पा जाते हैं । वे लड़के सुपठित इसलिए होते हैं , क्योंकि उन्होंने वास्तविक इतिहास पढा होता है । वे जानते हैं कि फ़िरोज़ गांधी मुस्लिम नहीं , अपितु पारसी था । वह गलत जवाब नहीं लिखते कि ताजमहल पहले तेजोमहालय नामक मन्दिर था । समुद्र के बीच की चट्टानों को वे एक भौगोलिक गतिविधि मानते हैं , न कि  सेतु,

उन्हें विदित है कि बारिश इंद्र देव की कृपा से नहीं अपितु समुद्र के पानी के वाष्पीकरण से होती है ।
ऐ भतीजे , इतिहास , भूगोल , खगोल , भौतिकी को मिथकों के नहीं अपितु तर्क और तथ्य की कसौटी पर कसना सीख । खूब पढ़ , लिख और jnu में अपनी तादाद बढा , फिर वहां भगवा झंडा फहरा बिंदास । देख कन्हैया कुमार को अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कैसी सांगो पांग जानकारी है ।और एक तू है , जो मक्का की मस्जिद को हनुमान मंदिर बताता । तू इतना बड़ा हो गया फिर भी बच्चों जितना आई क्यू रखता । सिर्फ तेरी नाक बहना बंद हुई , अन्यथा तेरा बौद्धिक स्तर अभी तक नर्सरी के बच्चे जितना है । क्योंकि धूर्त सत्ता पिपासु ने तेरी मत भरमा दी । आखिर क्या तू अपढ़ - उजड्ड रह कर देशद्रोही कन्हैया से लड़ेगा ? काबिल बन मेरे प्यारे बच्चे , और भविष्य की लहरों पर सवारी गांठ ।

JNUSU Elections 2017-18, Final Results!

United Left (SFI-AISA-DSF) cruises to a landslide victory! Wins all four office-bearer posts with big margins, delivering a comprehensive defeat to the communal-fascist ABVP!

Red Salutes to comrades Geeta Kumari, Simone Zoya Khan, Duggirala Srikrishna, and Shubhanshu Singh, who have won by margins of 464, 848, 1107, and 835 votes.

Final positions:

President:

AISF - 416
Independent (Gaurav) - 23
SFI-AISA-DSF - 1506
Independent (Farooque) - 419
ABVP - 1042
BAPSA - 935
NSUI - 82
NOTA - 127
Blank - 20
Invalid - 50

Vice-President:

ABVP - 1028
NSUI - 201
SFI-AISA-DSF - 1876
BAPSA - 910
NOTA - 495
Blank - 66
Invalid - 44

General Secretary:

SFI-AISA-DSF - 2082
BAPSA - 854
ABVP - 975
NSUI - 223
NOTA - 389
Blank - 72
Invalid - 25

Joint Secretary:

NSUI - 222
AISF - 214
ABVP - 920
Independent - 60
SFI-AISA-DSF - 1755
BAPSA - 860
NOTA - 501
Blank - 50
Invalid - 38