Sunday 10 September 2017

भारतीय शिक्षा व्यवस्था

देश की  सबसे बड़ी समस्या है
देश की शिक्षा व्यस्था ।
Rte एक्ट 2009 देश की संसद ने पास किया कि 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को राज्य निःशुल्क
शिक्षा प्रदान करेगा ।
एक तरफ देश के निःशुल्क प्राइमरी स्कूल है और दूसरी तरफ
देश मे लाखों की फीस लेने वाले स्कूल ।
जब निःशुल्क शिक्षा की बात कही गयी तो यह शुल्क वाले स्कूल क्यो है  ? यदि है तो यह बच्चो पर फीस क्यों लेते है  ? यह स्कूल भी निःशुल्क  पढ़ाये । तब तो यह कानून सही है ।
यदि कोई कानून समाज मे भेदभाव करता है तो निश्चित ही समाज मे भेदभाव रहेगा ।🎤🎤🎤🎤🎤
इस एक्ट को बनाने वाले सांसद ही अपने बच्चों को निशुल्क फीस वाले स्कूलों में नही पढ़ाते है ।
यह कैसा कानून है इसे बनाने बाले ही पालन नही कर रहे है ।
निश्चित ही कोई न कोई बहुत बड़ी फाल्ट है इस कानून में ।
यह कानून भी देश मे एक पाठ्क्रम लागू नही कर सका
यह नही हो सका कि क्लास 1 की बुक जो  केरल में पढ़ाई जाए वही बुक delhi में पढ़ाई जाए । माध्यम की बात तो मान सकते है । लेकिन सिलेबस की नही। आज देश मे जितने स्कूल उतनी किताबे । वही स्कूल की प्रॉब्लम है जहाँ देश मे कुछ स्कूलों में ac रूम है तो कही छत भी नही है ।
यह कब तक होगा ?
कोई भी देश बिना समान शिक्षा के विकसित नही हो सकता ।
गरीब बच्चों का क्या दोष है कि पैदा होते ही सरकारी स्कूल में जाते है और इन नेताओं के बच्चों में ऐसा कौन सा गुण है कि इन्हें vip स्कूल मिलते है ।
इतना भेदभाव क्यो है  ?
आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम शिक्षा में समानता नही ला सके क्यो?
देश मे यह क्या हो रहा है दो घोड़ो
में एक घोड़े को चना, दाना, अच्छे ताकत की वस्तुएं खिलाओ और उसे रेस के लिए तैयार करो उसे ट्रेनिंग दो और एक घोड़े को मुंह बांधकर छोड़ दो घास चरने के लिए । बाद में  दौड़ कराये
औऱ कहे जो आगे रहेगा वह जीतेगा ।  यह मानवता नही है ।
यह क्रूरता है और यही देश मे हो रहा है । समान पेपर तब
समान स्कूल हो जब ।
जब देश की शिक्षा एक नही है तो सबको आईएएस pcs में सबको एक पेपर क्यो दिया जाता है ।
यह अन्याय है ।
यही देश मे हो रहा है ।
सरकारी लोंगो को अपने ही स्कूलों पर भरोसा नही है अपने ही शिक्षको पर भरोसा नहीं है।
अपनी ही किताबो पर भरोसा नही है । अपनी ही शिक्षा व्यवस्था
पर भरोसा नही है तो बिना सरकारी कैसे करें ।
जब तक शिक्षा में असमानता रहेगी।देश मे हर जगह ,हर क्षेत्र में असमानता रहेगी।

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