Tuesday 19 September 2017

मुजरा या दलाल मीडिया


पहले कोठे होते थे, उनमें मुजरे होते थे, इन कोठों पर अक्सर शहर, कस्बों के धनवान सेठ जाया करते थे। असल कोठे तो बहुत कम लोगों ने देखे होंगे जो देखे हैं फिल्मों में ही देखे हैं। हाथों में, गले में फूलों की माला पहने, शराब के जाम छलकाते, कामुक निगाहों से तवायफ़ का मुजरा देखते, उस पर रुपए लुटाते सेठों की बड़ी पूछ परख होती थी।

समय बदला, कोठों की जगह डांस बारों ने ले ली, फिलहाल ये डांस बार महानगरों तक ही सीमित हैं लेकिन इन्होंने मन में सेठों वाली हसरत लिए एक आम इंसान को भी अपने इस ख़्वाब को पूरा करने का मौक़ा दे दिया है। तेज़ संगीत में नाचती गाती बार बालाएं और जाम छलकाते, पैसा लुटाते "दिल के रईस".. ये अलग बात है कि कईयों को अगले दिन जब होश आया और पैसों का हिसाब लगाया तो पता चला कि कितना बुरी तरह खुद को लुटवाकर आये हैं।

डांस बारों का माहौल इतना रंगीन, चमकदार बनाया जाता है कि वहाँ जाने के बाद आदमी सब कुछ भूल जाता है, इतना मदमस्त हो जाता है कि वो केवल इसी दुनिया में ही जीना चाहता है। लेकिन इस चकाचौंध भरी दुनिया का काला स्याह सच जो कि लोग जानते हुए भी जानना नहीं चाहते हैं, वो है इनमें काम करने वाली लड़कियों का दर्द, उनकी मजबूरियाँ, उनकी असल ज़िंदगी की तकलीफ.. क्योंकि सौदा केवल खुशियाँ बिखेरने का होता है ग़म का नहीं..

समय ने एक करवट और ली थी गुपचुप तरीके से, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। डांस बारों की ही तर्ज़ पर भारत का मीडिया भी काम करता है। वो आपको असली दर्द, तकलीफें, असली मुद्दे कभी कभार ही बताता है। वो आपको एक अलग ही चकाचौंध में रखता है। हर मुद्दे का दाम तय होता है। कुछ "ब्रेकिंग" मिल जाय या बनाना हो तो उसकी क़ीमत अलग। इस "मुजरे" में नाचने वाले एंकर होते हैं, परदे के पीछे इनके "कोरियोग्राफर" अलग होते हैं। कुछ को नाचने का इतना अनुभव हो चुका है कि अब केवल उनके आका उन्हेँ "धुन" सुनाते हैं और उस पर कैसा मुजरा पेश करना है वो ये एंकर उर्फ़ पत्रकार उर्फ़ तवायफें अपने हिसाब से थिकरती हैं। बहुत ज़ोरदार मुजरा पेश करने पर पैसों की बारिश भी उसी तरह से होती है।

अधिकांश जनता इसी "मुजरे"को हक़ीक़त मानती है और इसी पर यक़ीन करना चाहती है। लेकिन एक बात तय है चकाचौंध कितनी भी हो, बाहर आकर असली दुनिया को देखना ही पड़ता है। मीडिया का मुजरा अपने आकाओं की मर्ज़ी और अपनी कमाई के हिसाब से चलता है, आप खुद को कितना लुटने से बचा पाते हो ये आपको तय करना है।

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